500-निष्पाप होने का दंड दो
500-निष्पाप होने का दंड दोby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Tuesday, October 2, 2012 at 2:36pm ·kishorkumarkhorendra द्वारा 14 नवंबर, 2009 तुम…मुझे-गुनगुनारहेहो….यातुम्हारीलिखीहुईकिसीएककहानीकोमैं जीरहा...
View Article501-तुममे और मुझमे भला क्या हैं फर्क
501-तुममे और मुझमे भला क्या हैं फर्कby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Sunday, October 7, 2012 at 1:40pm ·तुममे और मुझमे भला क्या हैं फर्कतुममे और मुझमे ....?भला क्या हैं फर्कतुम प्रेम भाव होमै हूँ उसका...
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505-तुम्हारी इबादतby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Thursday, October 11, 2012 at 12:18pm ·कविता लिखने कीमुझे तो है आदतइसी बहाने कर लिया करता हूँरोज तुम्हारी इबादततुम्हारे सौन्दर्य सेअभिभूत हो जाया...
View Article509-यात्रा के तीर्थ तक पहुंचना है ..
509-यात्रा के तीर्थ तक पहुंचना है ..by Kavi Kishor Kumar Khorendra on Friday, October 12, 2012 at 6:56pm ·यात्रा के तीर्थ तक पहुंचना है .. -बंद मुट्ठी के भीतर ..मन को पेपरवेट की तरह ..दबा रहा हू...
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510-कविता -लिखना ...by Kavi Kishor Kumar Khorendra on Friday, October 12, 2012 at 7:28pm ·कविता -लिखना ... कविता लिखते -लिखते पता नही चला ...कब शाम हो गयीकब धुप मुझे छोड़कर चली गयी ...भूख नही लगी ..न...
View Article511-खिलने दो पुष्पों को .
511-खिलने दो पुष्पों को .by Kavi Kishor Kumar Khorendra on Saturday, October 13, 2012 at 3:44pm ·तुम्हारे आंसुओ को छत पर रख आया हूँसुख को उतरने दो ..धुप की तरहसीढियों से आंगन तक .खिलने दो पुष्पों को...
View Article512-जब में कविता पढ़ता हूँ ...
512-जब में कविता पढ़ता हूँ ...by Kavi Kishor Kumar Khorendra on Saturday, October 13, 2012 at 3:58pm ·जब में कविता पढ़ता हूँ ... जब मै कविता पढ़ता हूँ ,.. पत्ते पर बैठ कर चीटियों सा ...नदी पार करने...
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513-मेरा परिचयby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Saturday, October 13, 2012 at 4:12pm ·पता नही मैं आदमी हूँ या एक् शब्द ..या अभी -अभी ..पौधे मे ..खिला हुआ कोई फूल .या फिर ओंस बूंद मे दृष्टिगोचर होता...
View Article515-खत्म नही होती शायद यात्रा
515-खत्म नही होती शायद यात्राby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Saturday, October 13, 2012 at 5:31pm ·खत्म नही होती शायद यात्राकहानी मेबच्चा सुनते -सुनतेख़ुद बन जाता है खरगोश या कछुवालेकिनसचमुच मेजीवन...
View Article516-याद हो गए
516-याद हो गएby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Sunday, October 14, 2012 at 12:15pm ·कितने दिन औरकितनी ..रातव्यतीत हो गएभूलने की कोशिश मेतुम .....मुझे ,याद हो गएमै पुरूष आधामन मे बसी रहतीइसलिए -सदैव...
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517-मुझ स्वपन को ...by Kavi Kishor Kumar Khorendra on Sunday, October 14, 2012 at 12:34pm ·मुझ स्वपन को .....-क्यामैठीक ठीक ...वही हूँ जो मै ....होना चाहता थायाहो गया हूँ वही ...जो मै..... होना चाहता...
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519-"प्राचीन मंदिर मे "by Kavi Kishor Kumar Khorendra on Monday, October 15, 2012 at 5:58pm ·"प्राचीन मंदिर मे " धरती के इसबहुतप्राचीनमन्दिर के भीतरजर्जर हो चुके अंधेरो मेउतरकरसीडियाँगर्भालयमेंउजालो...
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520-अनुगामी ....अनंत विचार "by Kavi Kishor Kumar Khorendra on Wednesday, October 17, 2012 at 2:14pm ·अनुगामी अनंत विचार " तुमसाकिनाराहूँया ......अपनासामंझधार ....? बह रहा प्रवाह मेस्वयम हीक्याबन नाव...
View Article521-मत रोको उसे
521-मत रोको उसेby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Wednesday, October 17, 2012 at 2:40pm ·मत रोको उसे ....... १-मत रोको उसेउस आदमी कोजो दर्द के पहाड़ सेलावे की तरह उतर रहा हैउसकेओंठ......सीले हुए हैहाथ...
View Article524-प्यार अंधा नही ..मौन होता हैं ..!
524-प्यारअंधा नही ..मौनहोता हैं ..!by Kavi Kishor Kumar Khorendra on Wednesday, October 17, 2012 at 3:08pm ·तुम्हारी मुस्कराहटधुप की तरहदिन -भरमेरे साथरहती हैबिखरा -बिखराहवा की तरहअबनही घूमतासडको...
View Article525-रास्ते लौटने लगते है "
525-रास्ते लौटने लगते है "by Kavi Kishor Kumar Khorendra on Wednesday, October 17, 2012 at 7:37pm ·किसीउपन्यासकेसुखद अंत कोकोईनही जी पाताहर पलकौरवो कीभीड़ के साथ -हमेरौंदता हुआ निकाल जाता हैसचमुचसच के...
View Article526-यह है शाश्वत सत्य
526-यह है शाश्वत सत्यby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Thursday, October 18, 2012 at 11:08am ·क्या यह हैं सचकिकोई एक हीहोता है वह शख्सजो निभाता है आजीवनकिसी कवि की कविता ..पढ़ने की रस्म जो बदले मेंकुछ...
View Article527-उदगम से ही....
527-उदगम से ही....by Kavi Kishor Kumar Khorendra on Thursday, October 18, 2012 at 12:17pm ·-कविता ....लिखने मेकितने ...पन्ने लगेकितनी उम्रकितने दर्द ....छने ....लगेकईजन्मो कीतपस्या ...के बादजैसेवोमेरे...
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528--पृथ्वी को उठाकरby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Thursday, October 18, 2012 at 8:53pm ·-पृथ्वीको उठाकर १-मेरी पत्नी ,....बर्तनफ़िर फर्नीचरया पूरे घर कोउठा कररोजरखती हैसही जगह परउसे पता है...
View Article529-" सागर तो बन ही जाओगे "
529-" सागर तो बन ही जाओगे "by Kavi Kishor Kumar Khorendra on Friday, October 19, 2012 at 9:15am ·" सागर तो बन ही जाओगे "लिखते -लिखतेमैअक्षरबन गयामुझे खोजो अब ,...शब्दों मेतलाशो किताबोंमेपन्नो के बीचकही...
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