288-प्रत्येक मनुष्य का जीवन
288-प्रत्येक मनुष्य का जीवनby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Thursday, January 12, 2012 at 9:55pm ·रहूँ तुम्हारे ख्यालों में..मैं पल हरसमुद्र भी लगे तुम्हें मुझसाछू ले तुम्हें मेरी उँगलियों सा ..उसकी...
View Article290-तुम यदि धरती हो
290-तुम यदि धरती होby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Monday, January 16, 2012 at 11:04am ·मेरे ह्रदय मेंतुम्हारी छवि का हैं वासमेरा मन कहता हैंकभी समाप्त न होतुम्हारा यह प्रवासतुम महकती रहो मेरी...
View Article298-यह क्षितिज
298-यह क्षितिजby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Monday, January 30, 2012 at 9:52am ·सिर्फ तुम्हरी तस्वीरों तक हीमै कैसे रह सकता हूँ सिमिततुम्हें तलाशते हुएभटक रहा हूँजंगल जंगल ,पर्वत पर्वतरोक लेता हैं...
View Article282-तुम ही तो हो मेरी प्रियतमा
282-तुम ही तो हो मेरी प्रियतमाby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Tuesday, January 3, 2012 at 1:27pm ·तुम ही तो हो मेरी प्रियतमाछंदों में तुम्हें ही हूँ रचामेरे ह्रदय की धमनियों मेंएक पवित्र नदी सी बहती...
View Article314-मिलन की रात आयी
314-मिलन की रात आयीby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Thursday, February 16, 2012 at 10:53am · विरह के दिवस का हुआ अवसानमिलन की रात आयीगोधूली बेला के उपरान्तसंध्या वधू सीतुम संवर आयीझर गए पुष्पबिखर...
View Article318-एक कहानी
318-एक कहानीby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Friday, February 17, 2012 at 10:53am ·हर ह्रदय की अपनी हैंएक कहानीहर आँखों में हैंखारा पानीदर्द अधरों तक आकररह जाते हैंमूक हो जाती हैंन जाने कयों तब...
View Article324-इतराता सा लगता हैं बादल
324-इतराता सा लगता हैं बादलby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Sunday, February 19, 2012 at 2:37pm ·इतराता सा लगता हैं बादलआमंत्रित करता सा लगता हैंदूर तक फैला नदी का आँचलनजर न लगे यह सोचलगा जाती हैं...
View Article326-सपनो के क्षितिज के द्वार पर तुम हो खड़ी
326-सपनो के क्षितिज के द्वार पर तुम हो खड़ीby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Wednesday, February 22, 2012 at 1:47pm ·तुम तक पहुँचना संभवनहीं हैंसपनो के क्षितिज के द्वार पर तुम हो खड़ीकांच के फलक के उस...
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327-कहते हैं की तुम माया होby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Thursday, February 23, 2012 at 10:30am · तुमसे ..मेरा वियोग हैं चिरप्रेम में सततबनी रहें यह पीरह्रदय में तुम्हारी ही छवि हैंदिखलाऊं क्या...
View Article328-चाँद की तरह जैसे उसे मैं
328-चाँद की तरह जैसे उसे मैंby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Thursday, February 23, 2012 at 2:31pm · तुम कर ही लेती हो मुझे सम्मोहितअपनी बिंदिया के वृत्त से मुझे घेर करअपने ओंठों के रंग से मुझे रंग...
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330-तुम्हारे बिनाby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Sunday, March 4, 2012 at 8:53am ·तुम्हारा जीना ऐसा हैं जीनामानो झंकृत हो ..उठी होतुम्हारे ह्रदय की वीणाजिसके प्रतिमुझमे हैं आस्थामुझमे हैं...
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335-एकांत के सरोवर मेंby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Sunday, March 4, 2012 at 9:07am ·एकांत के सरोवर मेंभरी हुईनिस्तब्ध चांदनी हो तुम बस मै ही सुन पाऊवह मधुर रागिनी हो तुम मेरी प्रतिछाया होमेरी सह...
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334-पर तुम सरिताSunday, March 4, 2012यह हैं ....शब्दों का ..रिश्तामै काव्य तुम हो ...कवितारस भर जाते हैंतुम्हारे मूक अक्षरह्रदय में ...मीठामैं ढूढता निज मेंमेरे मन के सागर मेंकही खोयी हुई होपर तुम...
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337-उसका चेहरा भी लगता हैं धूमिलby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Friday, March 9, 2012 at 10:07am ·प्यार हो जाता हैं कयों ,कहना हैं मुश्किलअकारण करीब आ ही जाते हैं दो दिलइस जहाँ में हर कोई हैं एक...
View Article343-तुम ही हो मेरे ह्रदय का स्पन्दन
343-तुम ही हो मेरे ह्रदय का स्पन्दनby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Tuesday, March 27, 2012 at 12:02pm ·दूर दूर तक ...पसरा हैं सूनापनखाली खाली से मन मेंसुबह की धूप सी भर जाती हो तुम अपनापनधूल उडाती जब...
View Article348-तुमसे हैं मेरा गहरा संबंध
348-तुमसे हैं मेरा गहरा संबंधby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Wednesday, March 28, 2012 at 1:13pm ·तुमसे हैं मेरा गहरा संबंधनिशर्त हैं पर यह प्रणय बंधनतुम्हारी आँखों के इशारों परउड़ता हुआ हूँ ..मै एक...
View Article349-ग्रामीण पर्यावरण
349-ग्रामीण पर्यावरणby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Wednesday, March 28, 2012 at 1:16pm ·कट कर आ गयी जबखलिहानों में गेहूं की फसलपसरा खेतों में सूनापन सकलपगडंडियों पर बन गयी ..धूल की नयी परतधूप की आंच...
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350-जब हुआ सुबह का आगमनby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Wednesday, March 28, 2012 at 1:18pm · प्रफुल्लित हुए जड़ और चेतनजब हुआ सुबह का आगमनगूंजने लगेचिड़ियों के कलरव ,भ्रमरों के गुंजनखिले पीले लाल...
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355-रेत के पन्नों परby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Thursday, March 29, 2012 at 2:42pm · रेत के पन्नों परएक गीत लिखने लगी हैं चांदनीस्निग्ध किरणों का स्पर्श पाहर नदी लगने लगी हैं ..मंदाकनीबरगद की...
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359-गाँव के इस कमरे मेंby Kavi Kishor Kumar Khorendra on Sunday, April 1, 2012 at 3:44pm · एक कंदील ..जिसे अँधेरे में रहने की आदत हैंऔंधे लेटे हुए पुराने कपड़ों से भरे कुछ बोरे ..जिनके मुंह सीले हुए...
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