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Channel: तात्पर्य
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850-"मुक़द्दर "

"मुक़द्दर "मुनासिब नहीं है की पहुँच जाउँ अब तेरे दर पर गुलाब की जगह काँटों का पहरा है तेरे दर परख्यालों में ही तुझे बुनता रहा हूँ जीवन भर बुलाया नहीं तूने कभी मुझे अपने घर परटिमटिमाते तारो और अंधेरों...

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851-"उड़ान "

"उड़ान "अजनबी हो फिर भी मुझसे एक रिश्ता है तेरे मेरे बीच अनाम सा एक रिश्ता हैमुहब्बत ,प्यार ,वफ़ा ए इश्क हो यदि तो कतरे में सागर भी आ बसता हैइस जहाँ का मकसद मैने जान लिया कुर्वत के लिए इर्फान भी तरसता...

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852-चिंगारी"

चिंगारी"प्यार की राह के अंतिम छोर तक हम आ गये हैंपर्वत की चोटियों सा आकाश तक हम आ गये हैंतन से मन ,मन से रूह तक का यह सफ़र अच्छा रहाहमारे साथ रहने कहीं कोहरा कही शबनम आ गये हैंराख के ढेर में छुपी रहती...

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852-"गंगा जल "

"गंगा जल "मैने कहा तुम ही तो मेरी नयी ग़ज़ल हो उसने कहा तुम मेरे प्यार में पागल हो मैने कहा मैं ज़मीं हूँ और तुम नीला आसमाँ हो उसने कहा तुम मेरे मन की आँखों के काजल हो वियोग की लंबी तन्हाई मेरी हमसफ़र...

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853-"खत "

"खत "क्या मेरे दिल में ही बस प्यार प्यार भरा है लोग कहते है हमारा दिल भी सोने सा खरा हैशब्दों ने मेरी उंगली पकड़ कर मुझसे लिखवाया वरना मेरी ज़ुबाँ पर भी तो जड़े ताले का पहरा हैवो भोली है नादां हैं...

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854-"फूल"

"फूल"तुम कहते हो सारे फूल अच्छे लगते हैंतेरे जुड़े में गुलाब के फूल अच्छे लगते हैंतुम्हारी नीयत पर मुझे कोई गुमान नही हैतुम्हे मुझसे हुऐ शरारती भूल अच्छे लगते हैंउस पार कोहरे से घिरे तुम, जब नज़र आते...

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855-"वुसअत ए मुहब्बत "

"वुसअत ए मुहब्बत "चुभते हुऐ इंतज़ार के काँटों में गुलाब सा तुम खिले हो छिटकी हुई यादों की चाँदनी में माहताब सा तुम खिले होमेरे गम ए हिज्र का तुम्हें ज़रा भी अनुमान नहीं है मुझमे ,रेत में जज़्ब लहरों के...

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856-न कभी हाँ कहा....

न कभी हाँ कहा....न कभी हाँ कहा न कभी ना कहा उसने मेरे सवालों के जवाब में कुछ ना कहा उसनेउसकी खामोशी की गहनता भी बोलती है मेरे मन के दर्द को ,दर्द अपना कहा उसनेमेरी निगाहों की किताब को पढ़ चुकी है वो...

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857-"तेरी जुदाई को......"

"तेरी जुदाई को......"तेरी जुदाई को सहना अब आसान नहीं है मेरी आपबीती का तुझे अनुमान नहीं हैसाये की तरह तेरे संग मैं चलता आया हूँ मेरे खुलूश का और कोई अरमान नही हैजबसे तुम गये हो मुझे तन्हा छोड़कर मेरे...

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858-हर घड़ी तेरा...

हर घड़ी तेरा...हर घड़ी तेरा मैं बेसब्री से इंतजार करता हूँ तू आये न आये पर तुझपे ऐतबार करता हूँतू कौन हैं तेरा नाम है क्या मुझे मालूम नही इब्तिदा से तुझसे मैं बेइंतहा प्यार करता हूँसाहिले वस्ल इस जहाँ...

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859-मकहने लगता हैं...

मकहने लगता हैं...मकहने लगता हैं मेरा घर तेरे आने के बाद महकने लगती हैं मेरी साँसें तेरे जाने के बादअब न कोई गम है ना कोई सितमगर हैं मेरे इश्क़ को तेरे ज़रिए आज़माने के बादचाँद तारों को भी मुझसे रश्क़...

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860-यादों में तुम्हारे ....

यादों में तुम्हारे ....यादों में तुम्हारे हरदम मैं खोया रहता हूँ तेरे सपनो के आगोश में मैं सोया रहता हूँतुम कोहरे सा आकर रोज ओझल हो जाते हो वियोग सूत्र में अश्रु मोतियों सा पिरोया रहता हूँशबनम से नम...

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861-"चुभन "

"चुभन "झरते हैं तो क्या हुआ रोज तो खिलते है सुमन काँटों को देखकर महसूस न करों चुभन मन बहता ही रहता है गति ही है जीवन हालाँ की यह सच नहीं है फिर भी मान लो क्षितिज परज़मीं से मिल रहा है गगनआती हुई...

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862-चाँद दिखा नही ...

चाँद दिखा नही ...चाँद दिखा नही बहुत अंधेरा हैं गम के अमावाश ने आ घेरा हैतारों की तरह बिखरा है मेरा दर्द याद में चाँदनी सा तेरा चेहरा हैतू बहती नदी मै स्थिर सागर हूँ तेरे प्रति प्रेम मेरा अति गहरा...

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863-भटकाव"

भटकाव"आख़िर मैं पहुँच ही गया जहाँ पर राह ख़त्म हो ज़ाती है यहाँ पर न शहर है न गाँव है आकाश का धरती की ओर बस कुछ झुकाव हैयहाँ से एक नदी शुरू होती हैउसकी सतह पर एक नाव तैरती हैउस पार घना जंगल हैवहाँ...

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864-चाँद दिखा नही ...

चाँद दिखा नही ...चाँद दिखा नही बहुत अंधेरा हैं गम के अमावाश ने आ घेरा हैतारों की तरह बिखरा है मेरा दर्द याद में चाँदनी सा तेरा चेहरा हैतू बहती नदी मै स्थिर सागर हूँ तेरे प्रति प्रेम मेरा अति गहरा...

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865-"चुभन "

"चुभन "झरते हैं तो क्या हुआ रोज तो खिलते है सुमन काँटों को देखकर महसूस न करों चुभन मन बहता ही रहता है गति ही है जीवन हालाँ की यह सच नहीं है फिर भी मान लो क्षितिज परज़मीं से मिल रहा है गगनआती हुई...

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866-यादों में तुम्हारे ....

यादों में तुम्हारे ....यादों में तुम्हारे हरदम मैं खोया रहता हूँ तेरे सपनो के आगोश में मैं सोया रहता हूँतुम कोहरे सा आकर रोज ओझल हो जाते हो वियोग सूत्र में अश्रु मोतियों सा पिरोया रहता हूँशबनम से नम...

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867-तेरे रुख़ से......

तेरे रुख़ से......तेरे रुख़ से वो हँसी गायब है जहाँ के प्रति यकीं गायब हैतुमने जिस पे ऐतबार किया वो निगहबाँ अभी गायब हैजो तेरी तन्हाई का साथी है चाँद की वो चाँदनी गायब हैमकसद समझ नही आयापतवार है कश्ती...

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868-मुझे जंगल के.....

मुझे जंगल के.....मुझे जंगल के दुर्गम रास्तों की आवारगी पसंद है मर मिटने को आतुर परवाने की दीवानगी पसंद हैवियोग में तेरे मैं तो दूर बहुत दूर निकल आया हूँ मुझे महा सागर के साहिल की वीरानगी पसंद हैवो तो...

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